कविता संग्रह >> मैथिली कविता संचयन मैथिली कविता संचयनगंगेश गुंजन
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मैथिली कविता संचयन शीर्षक अइ पोथी में संकलित मैथिलीक 51 श्रेष्ठ कविक महत्वपूर्ण कविता...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
विस्तृत आबादीक विपन्न क्षेत्र मिथिला, सभ दिनसँ
रूढ़िबद्ध, आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक–वैज्ञानिक विकासक दृष्टिएँ
रिक्त आ पछुआएल रहल अछि। स्वतन्त्र भारतक यत्किंचितो विकासफल, जे देशक आन
समाज भोग’ लागल छल, मिथिला क्षेत्र ताहूसँ वंचित, उपेक्षित,
अनभिज्ञ
आ अनुपस्थित छल। फलस्वरूप आम जनजीवनक आर्थिक समस्या, राजनीतिक आदर्श,
देश-भावनाक अपकर्ष आदि देखार छल। अत्यन्त सूक्ष्म आ कोमल आघातक संग
बौद्धिक जगतमे मोहभंगक प्रक्रियाक आरम्भ भ’ गेल छल। एहि समस्त
स्थिति पर मैथिली कविता गम्भीरतापूर्वक अपन नजरि रखने छल। एहिसँ पूर्वक
समयमे सेहो मैथिली कविता समकालीन समाजमे अपन प्रभाव आ उपयोगिता साबित करैत
रहल। विद्यापति, गोविन्ददाससँ चलल अजस्र-काव्य-धारा, मनबोध, चन्दा झा,
सीताराम झा प्रभृत्ति श्रेष्ठ कविगणक अवदानसँ पुष्ट होइत रहल। वैद्यनाथ
मिश्र यात्री तथा राजकमल चौधरी स्वातंत्र्योत्तर कालक कविगणमे सर्वाधिक
अनुकरणीय बनलाह। मैथिली कविता संचयन शीर्षक अइ पोथीमे संकलित मैथिलीक 51
श्रेष्ठ कविक महत्वपूर्ण कविता अही तथ्यक प्रमाण प्रस्तुत करैत अछि।
अध्ययनक सुविधाक दृष्टिएँ पोथीकें तीन खण्डमे विभक्त कएल गेल
अछि–प्रारंभ, सम्प्रति, सम्प्रत्योत्तर। विद्यापतिसँ
ल’
क’ नवीनतम पीढ़ी धरिक श्रेष्ठ रचनाकारक श्रेष्ठतम कविताक ई
संकलन
निश्चित रूपसँ पाठक लग मैथिली कविताक असली आ प्रमाणिक चित्र उपस्थित
क’ सकत।
विद्यापति
आदरें अधिक काज नहि बंध।
माधव बूझल तोहर अनुबंध।।
आसा राखह नयन पठाए।
कत खन कउसलें कपट नुकाए।।
चल चल माधव तोहें जे सयान।
ताके बोलिअ जे उचित न जान।।
कसिअ कसउटी चिन्हिअ हेम।
प्रकृति परेखिअ सुपुरुख पेम।।
सउरभें जानिअ कमल पराग।
नयने निवेदिअ नव अनुराग।।
भनइ विद्यापति नयनक लाज।
आदरें जानिअ आगिल काज।।
माधव बूझल तोहर अनुबंध।।
आसा राखह नयन पठाए।
कत खन कउसलें कपट नुकाए।।
चल चल माधव तोहें जे सयान।
ताके बोलिअ जे उचित न जान।।
कसिअ कसउटी चिन्हिअ हेम।
प्रकृति परेखिअ सुपुरुख पेम।।
सउरभें जानिअ कमल पराग।
नयने निवेदिअ नव अनुराग।।
भनइ विद्यापति नयनक लाज।
आदरें जानिअ आगिल काज।।
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